शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2018

इश्क़ है इश्क़...................


इश्क़ है इश्क़, 

कायेनात बदल जाते हैं । 

इसमें हर इंसान, 
लाचार नज़र आते हैं । 

जो भी आता है,दिल जोड़ जाता है,
तोड़कर रिश्ते
फ़रिश्ते को भूल जाते हैं। 
  
ये भी वक़्त है,वज़ूद जिसका न कोई 
रब पहले से ,
तक़दीर लिख जाते हैं 

जोर क्या इश्क़ में दिल पे किसी का 
जो होना है 
नसीब से  हो जाते हैं। 

इंसानियत है ही नहीं......

             WRITTEN and COMPOSED
               🅰🅺🆂🅷🅰🆈 🆁🅰🅽🅹🅰🅽

कैसी-कैसी आफ़ते बदनाम क्या होता 

इंसानियत है ही नहीं,इंसान  क्या होता 

लोग अब हमें मिलकर पैगाम देते हैं,
आदमियत है ही नहीं,ईमान क्या होता 


पूछते -पूछते वो सवाल हो गए मेरे 
प्रश्न रहा ही नहीं ,इम्तहान क्या होता 

शौक -ए-जिंदगी मकशद हो गई है 
सवालात ज़िन्दगी का,जवाब क्या होता 

इंतजार -ए - आलम और जाने क्या -क्या 
रात गुजरी ही नहीं ,दिन क्या होता 


हम ही काफी है "फना "जहां के लिए 
हम रहे ही नहीं ,जमाना क्या होता 

बस एक बार

बस एक बार मुझको,मोहलत तो दीजिये, ऐसे कभी बयां न हो, हसरत तो कीजिये। ऐसे कभी बयां न हो, सोहरत तो दीजिये। ****** कब तक कलम उठा के लिखत...

HMH (hear mind and heart)