गुरुवार, 22 फ़रवरी 2018

कभी सोचा नहीं आंख-ए-नम होगी

दूर जाने का गम इस कदर होगी 


कभी सोचा नहीं आंख-ए-नम होगी 

खुशनुमा ज़िन्दगी थी अभी तक मगर 
कभी सोचा नहीं शाम-ए-गम होगी 

सोचा न था रात तन्हाई का 
रात मुश्किल भरी इस क़दर होगी 

सोचता हूँ कभी क्यों ऐसा किया 
फ़क़त मज़बूरियां रही होगी 

निगाहें मिले जो कभी फिर बताना 
कभी शर्म से नज़रे ख़म होगी 

गम न कर दूर चला जाऊंगा 
कभी याद ज्यादा बातें कम होगी 

सिलसिला हो गया आने-जाने का अब 
कभी प्यार में इतना दम होगी 

बस एक बार

बस एक बार मुझको,मोहलत तो दीजिये, ऐसे कभी बयां न हो, हसरत तो कीजिये। ऐसे कभी बयां न हो, सोहरत तो दीजिये। ****** कब तक कलम उठा के लिखत...

HMH (hear mind and heart)