गुरुवार, 22 मार्च 2018

मंज़िल पाने की.................

मंज़िल पाने की ललक,
       न जाने क्या-क्या सीखा दिया। 
सो लेता हूँ काटो पे,
     कभी जमीं को गले लगा लिया। 

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बस एक बार

बस एक बार मुझको,मोहलत तो दीजिये, ऐसे कभी बयां न हो, हसरत तो कीजिये। ऐसे कभी बयां न हो, सोहरत तो दीजिये। ****** कब तक कलम उठा के लिखत...

HMH (hear mind and heart)