रविवार, 1 अप्रैल 2018

पैसे को जबसे........

पैसे को जबसे उड़ा मैं रहा हूँ 

तबसे जहर मैं पी रहा हूँ 

ख़रीदा नहीं कुछ जहर के अलावा 
है मालूम मगर फिर भी पी रहा हूँ 

पैसो से रिश्ता हमने जबसे बनाया 
पैसो की तरह मैं भटक जा रहा हूँ 

जिंदगी न रही न है जीने की हसरत 
जबसे पैसो की दुनिया में आ गया हूँ 

जहर का असर होता कुछ भी नहीं है 
पल दो पल में नहीं मैं मरा जा रहा हूँ 

हश्र-ए-दौलत को अब क्या कहूं मैं 
ख़रीदा जिसे उसी में लूट जा रहा हूँ 

"फना" दिल में खोजो न अपनी जगह को 
पैसा-ए-दिल कोठे पे उड़ा आ रहा हूँ 

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बस एक बार मुझको,मोहलत तो दीजिये, ऐसे कभी बयां न हो, हसरत तो कीजिये। ऐसे कभी बयां न हो, सोहरत तो दीजिये। ****** कब तक कलम उठा के लिखत...

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