गुरुवार, 15 मार्च 2018

मैं हवाओ से दिल लगाया हूँ

मैं हवाओ से दिल लगाया हूँ 

है यही राज़ जो छुपाया हूँ 

सोचूं भी तो किसे सोचूं 
हर रंग में तुझको पाया हूँ 

जब तुम साथ मेरे होते हो 
वतन-ए-मौज़ को ले पाया हूँ 

न शहर न कोई वतन जिसका 
जिस जगह चाहा वहां पाया हूँ 

ऐसा रिस्ता तुम्ही से क्यों मेरा 
हरेक साँस में तुझको पाया हूँ 

तुम जो रूठोगे साँस छूटेगी 
तुम्हीं से ज़िन्दगी जो पाया हूँ 

तूफां  बनकर न बुझा दिल-ए-अरमां 
करीब इतना न किसी को लाया हूँ 

चाहत उनका ही रहता है "फना"
हर चाह में उनको चाहा हूँ 

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